July 30, 2017

पैसे की कहानी ( गर्ल फ्रेंड - 1960) Paise ki kahani (Girl Friend - 1960)

कहते हैं इसे पैसा बच्चों, ये चीज़ बड़ी मामूली है
लेकिन इस पैसे के पीछे सब दुनिया रस्ता भूली है
इंसां की बनाई चीज़ है ये, लेकिन इंसान पे भारी हैं
हल्की-सी झलक इस पैसे की धर्म और ईमान पे भारी है
ये झूठ को सच कर देता है और सच को झूठ बनाता है
भगवान नहीं, पर हर घर में भगवान की पदवी पाता है

इस पैसे के बदले दुनिया में इंसानों की मेहनत बिकती है
जिस्मों की हरारत बिकती है, रूहों की शराफ़त बिकती है
सरदार खरीदे जाते हैं, दिलदार खरीदे जाते हैं
मिट्टी के सही पर इससे ही अवतार खरीदे जाते हैं

इस पैसे की खातिर दुनिया में आबाद वतन बंट जाते हैं
धरती टुकड़े हो जाती हैं, लाशों के कफ़न बंट जाते हैं
इज़्ज़त भी इससे मिलती है, ताज़ीम भी इससे मिलती है 
तहज़ीब भी इससे आती है, तालीम भी इससे मिलती है

हम आज तुम्हें इस पैसे का सारा इतिहास बताते हैं
कितने जुग अब तक गुज़रे हैं, उन सबकी झलक दिखलाते हैं
इक ऐसा वक़्त भी था जग में, जब इस पैसे का नाम न था
चीज़ें चीज़ों से तुलती थीं, चीजों का कुछ भी दाम न था 
इंसान फकत इंसान था तब, इंसान का मजहब कुछ भी न था 
दौलत, गुरबत, इज्ज़त, ज़िल्लत, इन लफ्जों का मतलब कुछ भी न था    

चीज़ों से चीज़ बदलने का ये ढंग बहुत बेकार-सा था
लाना भी कठिन था चीज़ों का, ले जाना भी दुश्वार-सा था
इंसान ने तब मिलकर सोचा – क्यूं वक़्त इतना बरबाद करें
हर चीज़ की जो कीमत ठहरे, वो चीज़ न क्यूं ईज़ाद करें
इस तरह हमारी दुनिया में पहला पैसा तैयार हुआ
और इस पैसे की हसरत में इंसान ज़लील-ओ-ख़्वार हुआ

पैसे वाले इस दुनिया में जागीरों के मालिक बन बैठे
मज़दूरों और किसानों की तक़दीरों के मालिक बन बैठे
जागीरों पे कब्जा रखने को कानून बने, हथियार बने 
हथियारों के बल पर धनवाले इस धरती के सरदार बने 
जंगों में लड़ाया भूखों को और अपने सर पर ताज रखा
निर्धन को दिया परलोक का सुख, अपने लिये जग का राज रखा
पंडित और मुल्ला इनके लिए मज़हब के सहीफ़े लाते रहे
शायर तारीफ़ें लिखते रहे, गायक दरबारी गाते रहे

वैसा ही करेंगे हम 
जैसा तुझे चाहिए 
पैसा हमें चाहिए !

हल तेरे जोतेंगे, खेत तेरे बोएंगे
ढोर तेरे हाकेंगे, बोझ तेरा ढोएंगे 
पैसा हमें चाहिए !

पैसा हमें दे दे राजा गुन तेरे गायेंगे
तेरे बच्चे बच्चियों का खैर मनायेंगे
पैसा हमें चाहिए !

लोगों की अनथक मेहनत ने चमकाया रूप ज़मीनों का 
भाप और बिजली हमराह लिए, आ पहुंचा दौर मशीनों का 
इल्म और बिज्ञान की ताक़त ने मुंह मोड़ दिया दरियाओं का 
इंसान जो खाक का पुतला था, वो हाकिम बना हवाओं का 
जनता की मेहनत के आगे कुदरत ने खजाने खोल दिये 
राजों की तरह रखा था जिन्हें, वो सारे जमाने खोल दिये 
लेकिन इन सब ईजादों पर पैसे का इज़ारा होता रहा 
दौलत का नसीबा चमक उठा, मेहनत का मुकद्दर सोता रहा 

वैसा ही करेंगे हम 
जैसा तुझे चाहिए 
पैसा हमें चाहिए !

रेलें भी लगाएंगे, मिलें भी चलाएंगे
जंगों में भी जाएंगे, जाने भी गवाएंगे
पैसा हमें चाहिए !

पैसा हमें दे दे बाबू गुण तेरे गायेंगे
तेरे बच्चे बच्चियों का खैर मनायेंगे
पैसा हमें चाहिये!

जुग-जुग से यूं ही इस दुनिया में हम दान के टुकड़े मांगते हैं
हल जोत के, फ़सलें काट के भी पकवान के टुकड़े मांगते हैं
लेकिन इन भीख के टुकड़ों से कब भूख का संकट दूर हुआ
इंसान सदा दुख झेलेगा गर खत्म न ये दस्तूर हुआ
जंजीर बनी है कदमों की, वो चीज़ जो पहले गहना थी
भारत के सपूतों! आज तुम्हें बस इतनी बात ही कहना थी
जिस वक़्त बड़े हो जाओ तुम, पैसे का राज मिटा देना
अपना और अपने जैसों का जुग-जुग का कर्ज़ चुका देना
जुग-जुग का कर्ज़ चुका देना !

नोट  :  इस गीत को कुछ हिस्से नीचे दिये औडियो में नहीं हैं | इन्हें हमने साहिर के गीतों के संकलन ‘गाता जाए बंजारा’ से लिया है |

(Composer : Hement Kumar, Singer : Asha Bhonsle)


2 comments:

  1. गीत को पूर्ण रूप में पोस्ट करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद्। साहित्य की इस ख़ास रचना को मेरे और अन्य पाठकों तक पहुंचने के लिए आपकी आभारी हूं।

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