पोंछ कर अश्क अपनी आँखों से मुस्कराओ तो कोई बात बने
सर झुकाने से कुछ नहीं होगा सर उठाओ तो कोई बात बने . ज़िन्दगी भीख में नहीं मिलती ज़िन्दगी बढ़ के छीनी जाती है
अपना हक संगदिल ज़माने से छीन पाओ तो कोई बात बने .
रंग और नस्ल, जात और मज़हब जो भी हो आदमी से कमतर है
इस हकीकत को तुम भी मेरी तरह मान जाओ तो कोई बात बने .
नफरतों के जहान में हमको प्यार की बस्तियां बसानी हैं
दूर रहना कोई कमाल नहीं पास आओ तो कोई बात बने .[ Singer : Rafi; Music : N.Dutta; Producer : I.A.Nadiadwala; Director : Khalid Akhtar; Artist : Jitender, Asha Parekh ]
बहुत ही अर्थपूर्ण ..... वाह साहिर साहब .... वाह ..... !
ReplyDeleteसुनील जी आपकी यह रचना बहुत ही खूबसूरत व प्रेरक है बिल्कुल सही कहा आपने "जिंदगी भीख से नहीं मिलती है उसको बढ़ के छीनी जाती है " बहुत ही अच्छी है आप ऐसी ही रचनाओं को शब्दनगरी पर भी लिख सकते हैं वहां पर भी जख्म गहरा था जैसी रचनाएँ पढ़ व् लिख सकते हैं।
ReplyDeleteSun ke hi laga ki yeh gana sahir saheb ne likha hoga is liye Google check kiya ki meri soch sahi thi
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