January 05, 2014

अब कोई गुलशन ना उजड़े (मुझे जीने दो-1963) Ab koi gulshan na ujdey (Mujhe jeene do-1963)

अब कोई गुलशन ना उजड़े अब वतन आज़ाद है
रूह गंगा की हिमालय का बदन आज़ाद है |

खेतियाँ सोना उगाएं, वादियाँ मोती लुटाएं
आज गौतम की ज़मीं, तुलसी का बन आज़ाद है |

दस्तकारों से कहो, अपनी हुनर मंदी दिखाएं 
उंगलियां कटती थीं जिसकी, अब वो फ़न आज़ाद है । 

मंदिरों में शंख बाजे, मस्जिदों में हो अज़ान
शेख का धर्म और दीन--बरहमन आज़ाद है |

लूट कैसी भी हो अब इस देश में रहने पाए
आज सबके वास्ते धरती का धन आज़ाद है |


[Composer : Jaidev; Singer : Md.Rafi, Producer ; Sunil Dutt;  Director ; Moni Bhattacharjee]

 [Note on Sahir : The third para was not used in movie.  It is taken from 'Gata Jaya Banjara', the collection of songs of Sahir.
 

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