August 28, 2012

ज़िंदगी ज़ुल्म सही ज़ब्र सही ग़म ही सही (शगुन - 1964) Zindagi jurm sahi, jabr sahi, gam hi sahi (Shagoon - 1964)


ज़िंदगी ज़ुल्म सही, ज़ब्र सही, ग़म ही सही
दिल की फ़रियाद सही, रूह का मातम ही सही ।

हमने हर हाल में जीने की कसम खाई है
अब यही हाल मुक़द्दर है तो शिक़वा क्यों हो
हम सलीके से निभा देंगे जो दिन बाकी हैं
चाह रुसवा हुई दर्द भी रुसवा क्यों हो ।

हमको तक़दीर से बे-वजह शिकायत क्यों हो
इसी तक़दीर ने चाहत की खुशी भी दी थी
आज अगर काँपती पलकों को दिये हैं आँसू
कल थिरकते हुए होंठों को हँसी भी दी थी ।

हम हैं मायूस मगर इतने भी मायूस नहीं
एक एक दिन तो यह अश्कों की लड़ी टूटेगी
एक एक दिन तो छटेंगे ये ग़मों के बादल
एक एक दिन उजाले की किरण फूटेगी ।

[Singer : Suman Kalyanpur, Composer : Khayyam, Production : Shaheen Art, Director : Nazar, Actor : Wahida Rehman, Kamaljeet]



2 comments:

  1. ऐसे सुंदर गीत लिखने वाले कहाँ गए.....यह गीत कभी आपके ब्लॉग के पते सहित अपने ब्लॉग पर लिखूँगा. आपका आभार.

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  2. भगवन, कमेंट से word verification हटा दीजिए.

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