ज़िंदगी
ज़ुल्म
सही,
ज़ब्र
सही,
ग़म ही सही
दिल की फ़रियाद सही, रूह का मातम ही सही ।
हमने हर हाल में जीने की कसम खाई है
अब यही हाल मुक़द्दर है तो शिक़वा क्यों हो
हम सलीके से निभा देंगे जो दिन बाकी हैं
चाह रुसवा न हुई दर्द भी रुसवा क्यों हो ।
हमको तक़दीर से बे-वजह शिकायत क्यों हो
इसी तक़दीर ने चाहत की खुशी भी दी थी
आज अगर काँपती पलकों को दिये हैं आँसू
कल थिरकते हुए होंठों को हँसी भी दी थी ।
हम हैं मायूस मगर इतने भी मायूस नहीं
एक न एक दिन तो यह अश्कों की लड़ी टूटेगी
एक न एक दिन तो छटेंगे ये ग़मों के बादल
एक न एक दिन उजाले की किरण फूटेगी ।
दिल की फ़रियाद सही, रूह का मातम ही सही ।
हमने हर हाल में जीने की कसम खाई है
अब यही हाल मुक़द्दर है तो शिक़वा क्यों हो
हम सलीके से निभा देंगे जो दिन बाकी हैं
चाह रुसवा न हुई दर्द भी रुसवा क्यों हो ।
हमको तक़दीर से बे-वजह शिकायत क्यों हो
इसी तक़दीर ने चाहत की खुशी भी दी थी
आज अगर काँपती पलकों को दिये हैं आँसू
कल थिरकते हुए होंठों को हँसी भी दी थी ।
हम हैं मायूस मगर इतने भी मायूस नहीं
एक न एक दिन तो यह अश्कों की लड़ी टूटेगी
एक न एक दिन तो छटेंगे ये ग़मों के बादल
एक न एक दिन उजाले की किरण फूटेगी ।
[Singer : Suman Kalyanpur, Composer : Khayyam,
Production : Shaheen Art, Director : Nazar, Actor : Wahida Rehman, Kamaljeet]
ऐसे सुंदर गीत लिखने वाले कहाँ गए.....यह गीत कभी आपके ब्लॉग के पते सहित अपने ब्लॉग पर लिखूँगा. आपका आभार.
ReplyDeleteभगवन, कमेंट से word verification हटा दीजिए.
ReplyDelete