June 27, 2016

तेरी है ज़मीं, तेरा आसमां ( द बर्निंग ट्रेन -1980) Teri hai zameen, tera aasmaan (The Burning Train – 1980)

तेरी है ज़मीं, तेरा आसमां, तू बड़ा मेहरबां, तू बख्शीश कर!
सभी का है तू, सभी तेरे, खुदा मेरे तू बख्शीश कर!

तेरी मर्ज़ी से ए मालिक, हम दुनिया में आए हैं
तेरी रहमत से हम सबने ये जिस्म और जान पाए हैं 
तू अपनी नज़र हम पर रखना
किस हाल में हैं, ये खबर रखना

तू चाहे तो हमें रखे, तू चाहे हो हमें मारे
तेरे आगे झुका के सर, खड़े हैं आज हम सारे
ओ! सबसे बड़ी ताकत वाले
तू चाहे तो हर आफत टाले 

[Composer :  R.D.Burman,  Singer : Padmini Kolhapure, Sushma Shresht, Producer: B.R.Chopra, Director : Ravi Chopra, Actor : Dharmendra, Hema Malini, Simi Grewal, Jitendra, Neetu Singh ]

तुमसे कहना है कि दुश्वार है तुम बिन जीना (चेहरे पे चेहरा -1980) Tumse kehna hai ki dushwar hai tum bin jina (Chehre pe Chehra -1980)

तुमसे कहना है कि दुश्वार है तुम बिन जीना
तुमसे कहना है मगर तुम कभी आओ तो कहूं

तुमको बीते हुये दिन याद नहीं हैं तो न हो
मैंने अब भी उन्हें सीने से लगा रखा है
इस यकीं पर कि किसी रोज़ तुम आओगे जरूर
घर की दहलीज़ को फूलों से सज़ा रखा है

टूट जाए न कहीं नाजे-मुहब्बत मेरा
रस्मे-दुनिया ही निभाने के लिए आ जाओ
आजमाना इसे समझूं कि सताना समझूं
मुझको बस इतना बताने के लिए आ जाओ  

[Composer : N.Dutta, Singer : Sulakshana Pandit, Producer/ Director : Raj Tilak, Actor : Sulakshana Pandit, Sanjeev Kumar]

June 15, 2016

साहिर के गीतों को आधार बनाकर रची गई मेरी पुस्तक ‘साहिर लुधियानवी : मेरे गीत तुम्हारे’ के कुछ अंश

फ़िल्मी दुनिया में  साहित्य से जुड़े कई सफल लोगों ने जोर आजमाईश की, पर उन्हें वसफलता नहीं मिल पाजो साहिर को नसीब हुयी । इसका एक कारण तो यह था कि ये लोग फिल्म के फॉरमेट को ठीक से पकड़ नहीं पा। एक फिल्म लेखक या गीतकार को कई बंधनों में रहकर काम करना होता है । उसे फिल्म की  कहानी, पात्रों के परिवेश, नायक-नायिका की  इमेज, प्रचलित गीत-संगीत, निर्माता-निर्देशक की पसंद-नापसंद सबका ख्याल रखना होता है ।  जाहिर है,  इतने बंधनों में रहकर काम करना  काफी मुश्किल है । इसलिए कोई हैरानी यहीं कि जिन लोगों ने साहित्य के क्षेत्र में नाम व शोहरत कमाई, वे मुंबई में चल नहीं पाऔर निराश होकर या मोहभंग करा कर वापस चले ग। साहिर के मामले में ऐसा नहीं हुआ क्योंकि उन्होंने फ़िल्मी गीतों की इन सीमाओं को पहचान लिया । उन्होंने इन बंधनों का रोना नहीं रोया, बल्कि  उसे स्वीकार कर लिया । ये बंधन उनकी सीमा-रेखा बन गए । उन्होंने मान लिया कि अब जो भी खेल करना है,  इसी में करना है । और उन्होंने खेल किया और खूब किया 

साहिर के कैरियर के पहले दौर की सफलता का बड़ा कारण उनकी धुनों के हिसाब से गीत लिख पाने की क्षमता थी । धुन की रिदम से मिलते-जुलते शब्द चुनना और उन्हें ऐसे वाक्यों में पिरोना कि एक निश्चित समय-सीमा में फिट हो सकें, एक जटिल काम है । यह काम और भी मुश्किल हो जाता है जब कोई गीतकार अच्छा गीत लिखने की तमन्ना रखता हो । अपने अहसास और विचारों की गहराई को बनी-बनाई धुनों में बांधने का काम साहिर खूब किया और बहुत खूबसूरती से किया । साहिर की इस काव्य प्रतिभा के बारे में फ़िल्मी गीतकार व शायर जां निसार अख्तर कहते हैं, "अल्फ़ाज़ और जज़्बात की खूबसूरती गीतों के लिए बड़ी अहम है । जो धुन साहिर को 'सुन जा दिल की दास्तां' के लिये दी गयी होगी, उस पर 'आ जा, आ जा बलमा' भी दिया जा सकता था, लेकिन यहीं पर एक शायर और तुकबंद का फर्क सामने आता है ।" 

June 01, 2016

तुमको देखा तो समझ में आया (दीदार-ए-यार- 1982) Tumko dekha to samajh me aaya (Deedar-e-Yaar - 1982)

तुमको देखा तो समझ में आया
लोग क्यों बुत को खुदा मानते हैं
बुत में बुतगर की झलक होती है
इसको छूकर उसे पहचानते हैं
पहले अंजान थे, अब जानते हैं
तुमको देखा तो समझ में आया

तुमको देखा तो ये मालूम हुआ,
लोग क्यों इश्क़ में दीवाने बने
ताज छोड़े गए और तख्त लुटे
कैस-ओ-फरहाद के अफसाने बने
पहले अंजान थे, अब जानते हैं
लोग क्यों बुत को खुदा मानते हैं
तुमको देखा तो ये समझ में आया

तुमको देखा तो ये अहसास हुआ
ऐसे बुत भी हैं जो लब खोलते हैं
जिनकी अंगड़ाइयां पर तोलती हैं
जिनके शादाब बदन  बोलते हैं
पहले अंजान थे, अब जानते हैं
लोग क्यों बुत को खुदा मानते हैं
तुमको देखा तो ये समझ में आया

हुस्न के जलवा-ए-रंगीं में खुदा होता है
हुस्न के सामने सजदा भी रवां होता है
दीन-ए-उल्फ़त में यही रस्म चली आई है
लोग इसे कुफ़्र भी कहते हों तो क्या होता है
 पहले अंजान थे, अब जानते हैं
लोग क्यों बुत को खुदा मानते हैं
तुमको देखा तो ये समझ में आया

(Composer : Laxmikant Pyarelal, Singer : Lata Mangeshkar, Director : H S Rawal, Producer:  Prasan Kapoor,  Actor : Rishi Kapoor, Tina Munim)

April 27, 2016

वतन की आबरू खतरे में है, हुशियार हो जाओ

वतन की आबरू खतरे में है, हुशियार हो जाओ
हमारे इम्तहां का वक़्त है, तैयार हो जाओ

हमारी सरहदों पर खून बहता हैं जवानों का
हुआ जाता है दिल छलनी हिमाला की चट्टानों का
उठो रुख फेर दो दुश्मन की तोपों के दहानों का
वतन की सरहदों पर आहनी दीवार हो जाओ
हुशियार हो जाओ, वतन की आबरू खतरे में है

वो जिनको सादगी में हमने आँखों पर बिठाया था
जो जिनको भाई कहकर हमने सीने से लगाया था
वो जिनकी गरदनों में हार बाहों का पहनाया था
अब उनकी गरदनों के वास्ते तलवार हो जाओ
हुशियार हो जाओ, वतन की आबरू खतरे में है

न हम इस वक़्त हिन्दू हैं न मुस्लिम हैं न ईसाई
अगर कुछ हैं तो हैं इस देश, इस धरती के शैदाई
इसी को ज़िंदगी देंगे, इसी से ज़िंदगी पाई
लहू के रंग से लिखा हुआ इकरार हो जाओ
वतन की आबरू खतरे में है, हुशियार हो जाओ

खबर रखना कोई गद्दार साजिश कर नहीं पाये
नजर रखना कोई ज़ालिम तिजोरी भर नहीं पाये
हमारी कौम पर तारीख तोहमत धर नहीं पाये
वतन-दुश्मन दरिंदों के लिए ललकार हो जाओ
वतन की आबरू खतरे में है, हुशियार हो जाओ

NOTE ON SAHIR : यह गीत साहिर ने 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान लिखा था | इसका संगीत खैय्याम साहब ने दिया था |
 

March 27, 2016

हिंदुस्तान, 13 मार्च 2016 में प्रकाशित 'साहिर लुधियानवी : मेरे गीत तुम्हारे' की समीक्षा


जनसत्ता, 27 मार्च 2016 (पृ 7) में 'साहिर लुधियानवी : मेरे गीत तुम्हारे'

पल दो पल के शायर की दास्तान (आउटलुक, अप्रैल11, 2016)

आउटलुक, अप्रैल11, 2016 के अंक में प्रकाशित मेरी पुस्तक “साहिर लुधियानवी: मेरे गीत तुम्हारे” की समीक्षा 


पल दो पल के शायर की दास्तान

(आउटलुक, अप्रैल11, 2016 के अंक में प्रकाशित मेरी पुस्तक “साहिर लुधियानवी: मेरे गीत तुम्हारे” की समीक्षा)

साहिर की ज़ुबान, साहिर की नज़्म, साहिर के गीत, साहिर की कहानियां, अगर साहिर को गिनते रहें तो वक़्त कम लगेगा | हिन्दी और उर्दू को उन्होंने अपनी दो आँखों की तरह प्यार से पाला | यह पुस्तक उसी साहिर के काम को याद दिलाती है | सुनील भट्ट ने जितना संभव हो सका है, साहिर को लफ्जों के माध्यम से पाठकों तक पहुँचने की कोशिश की है | अलग-अलग संदर्भों के साथ साहिर अपने गीतों के माध्यम से पाठकों से रूबरू होते हैं | सुनील भट्ट ने उन गज़लों को भी यहाँ जगह दी है जो मूल से रूपांतरित होकर फिल्म में आईं हैं | इस किताब को संदर्भ के लिए याद किया जाना चाहिए | हिन्दी में इस तरह की किताबों की हमेशा कमी रही है |

सुनील भट्ट ने साहिर के लोकप्रिय गीतों के साथ उन गीतों-नज़्मों-गज़लों को भी लिया है, जो सन 50 के दौर में उन्होंने लिखी थीं | फिल्म के साल के साथ दी गई इस जानकारी से साहिर को समझना और एक शायर, फिल्मी गीतकार के रूप में उनकी यात्रा को जानना दिलचस्प होगा | उनकी इस रचनात्मक यात्रा में उन्होंने कैसे-कैसे प्यार, देश, रंग-नस्ल, समुदाय पर लिखा और कितना मारक लिखा यह जानकारी महत्वपूर्ण है | सुनील भट्ट ने किताब को इस तरह बाँट दिया है, जिससे यह पता चल सके कि उनकी कलम कैसे समाज पर करारी चोट करती थी | उनके भजनों में भी सांप्रदायिक सौहार्द और अमन की बात खुलकर सामने आती थी | वह एक गीतकार थे या शायर, इस पुस्तक को पढ़ते हुये यह विचार आना लाजिमी है, लेकिन जब विविधताओं से भरी उनकी रचनाएं पढ़ें तो लगता है कि उन्होंने एक गीतकार को शायर से कभी अलग नहीं होने दिया | वह इतने सफल ही इसलिए रहे कि धुन के हिसाब से शब्द लिखने में माहिर थे | वह कहानी के मूल में पहुँच कर उस बिन्दु को पकड़ लेते थे, जहां व्यक्ति फिल्मी कहानी के साथ-साथ संगीत का मज़ा भी लेने लगता है | उनकी फिल्मी पकड़ और समझ ने उन्हें इतनी ख्याति दिलाई | सुनील भट्ट ने साहिर के गीतों से परिचय करने के साथ-साथ उनका परिचय भी पाठकों से कराया है |


सुनील अपनी प्रस्तावना में ही लिखते हैं, अगर हम साहिर के शायर और गीतकार दोनों पहलुओं को मिला दें तो एक विरत व्यक्तित्व सामने आता है, जिस पर अलग से काम करने की पूरी गुंजाइश है | यह वाक्य ही साहिर को समझने के लिए काफी है | क्योंकि आम लोगों के बीच साहिर सिर्फ फिल्मी गीतकार के रूप में ही पहचाने जाते हैं, जबकि साहिर एक उम्दा शायर भी थे | इसी को समझने के लिए इस पुस्तक में उनकी मूल गज़लों, नज़्मों का ज़िक्र भी है, जो बताता है कि उनकी कलम से तराने और शायरी कैसे निर्बाध रूप से बहती थी | हर एक पल के शायर साहिर के लिए फिल्मी गीत लिखना सिर्फ पैसा कमाने का माध्यम कभी नहीं रहा | वह इसे सामाजिक दायित्व भी मानते थे | भट्ट की मेहनत से वह एक सम्पूर्ण रूप से पाठकों तक पहुंचे हैं | हिन्दी पाठकों के लिए यह अच्छी खबर है |