जागरण
संवाददाता, देहरादून:
साहित्यकार सुनील भट्ट की किताब 'साहिर लुधियानवी : मेरे गीत तुम्हारे'
पर आयोजित विमर्श में कहा गया कि साहित्य सृजन पर मुख्यधारा के ¨हिन्दी साहित्य का एकाधिकार नहीं
हैं।
जिस सिनेमा और गीतों को मुख्यधारा का साहित्य महज मनोरंजन मानता है, वह भी
साहित्य सृजन का सशक्त माध्यम हैं। जरूरत सिर्फ अपना नजरिया दुरुस्त करने की है।
धाद संस्था के एकांश के माध्यम से
रेसकोर्स स्थित ऑफिसर्स ट्रांजिट हॉस्टल में आयोजित विमर्श में कथाकार मुकेश नौटियाल
ने सुनील भट्ट की कृति के माध्यम से सिनेमा के साहित्यिक पहलुओं को सामने रखा।
उन्होंने कहा कि 'साहिर लुधियानवी : मेरे
गीत तुम्हारे' ने मुख्यधारा के ¨हिन्दी
साहित्य की एकाधिकार की जमीन को तर्कपूर्ण ढंग से तोड़ने की कोशिश की है। उन्होंने ¨हिन्दी सिनेमा
जगत के गीतकारों, सिक्रप्ट लेखकों और फिल्मकारों पर अधिक से
अधिक लिखने की वकालत भी की। दून लाइब्रेरी एंड रिसर्च सेंटर रिसर्च एसोसिएट मनोज
पंजानी ने कहा कि तमाम गीतकारों का जिक्र करते हुए कहा कि इनके माध्यम से समाज को
तमाम अर्थपूर्ण गीत मिले हैं। कई बार गीतों के माध्यम से साहित्य और प्रासंगिक भी
नजर आता है।
कार्यक्रम
में अर्चना राय हरेंद्र परिहार व जन संवाद समिति के सांस्कृतिक दल ने साहिर के
गीतों की संगीतमय प्रस्तुति दी। धाद के प्रतिनिधि तन्मय ममगाईं ने बताया कि 20-21 मार्च
को दून में बाल साहित्य पर भी बड़ा विमर्श आयोजित किया जा रहा है। इसका मकसद नई
पीढ़ी को सृजनशील बनाना है। विमर्श में डॉ. जयंत नवानी, लोकेश
नवानी, नीलम प्रभा वर्मा, सुनीता चौहान,
अंबर खरबंदा, कांता घिल्डियाल, सविता जोशी आदि उपस्थित रहे।
By Publish Date: Sun, 22 Jan 2017 09:12 PM (IST) | Updated Date:Sun, 22 Jan 2017
09:12 PM (IST)
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