लोग औरत को फकत एक जिस्म समझ लेते हैं
रूह भी होती है उसमें ये कहाँ सोचते हैं ।
रूह क्या होती है, इससे उन्हें मतलब ही नहीं
वो तो बस तन के तक़ाज़ों का कहा मानते हैं
इस हकीकत समझते हैं, न पहचानते हैं ।
कितनी सदियों से ये वहसत का चलन जारी है
कितनी सदियों से है कायम, ये गुनाहों का रिवाज़
रूह क्या होती है, इससे उन्हें मतलब ही नहीं
वो तो बस तन के तक़ाज़ों का कहा मानते हैं
इस हकीकत समझते हैं, न पहचानते हैं ।
कितनी सदियों से ये वहसत का चलन जारी है
कितनी सदियों से है कायम, ये गुनाहों का रिवाज़
लोग औरत की हर चीख को नगमा समझे
वो कबीलों का जमाना हो, कि शहरों का समाज ।
जब्र से नस्ल बढ़े, जुल्म से तन मेल करे
ये अमल हमने है, बेइल्म परिंदों में नहीं
हम जो इंसानो की तहजीब लिए फिरते हैं
हम सा वहसी कोई जंगल के दरिंदो में नहीं ।
एक मैं ही नहीं, न जाने कितनी होंगी
जिनको अब आइना तकने से झिझक आती है
जिनके ख्वाबों में न सेहरे हैं, न सिन्दूर, न सेज
राख ही राख है, जो जेहन पे मंडळाती है ।
एक बुझी रूह, लुटे जिस्म के ढांचे में लिए
सोचती हूँ कि कहाँ जा के मुक्कदर फोडूं
मैं न जिन्दा हूँ कि मरने का सहारा ढूँढू
और न मुर्दा हूँ कि जीने के ग़मों से छूटूं ।
कौन बतलायेगा मुझको,किसे जाके पूंछूं
जिंदगी पहर के साँचो में ढलेगी कब तक
कब तलक आँख न खोलगा जमाने का ज़मीर
जुल्म और जब्र की ये रीत चलेगी कब तक ।
लोग औरत को फकत एक जिस्म समझ लेते हैं |
[Composer : Ravinder Jain, Singer : Asha
Bhonsle, Producer : B.R.Films, Director : B.R.Chopra, Actor : Zeenat Aman, Raj
Babbar]