ये रात बहुत रंगीन सही
इस रात में गम का जहर भी है
नगमों की खनक में डूबी हुयी
फरियाद ओ फुगाँ की लहर भी है ।
तुम रक्स (नाच) करो, मैं शेर पढूं
मतलब तो है कुछ खैरात मिले
इस कौम के बच्चों की खातिर
कुछ सिक्कों की सौगात मिले
लेकिन इस भीख की दौलत से
कितने बच्चे पढ़ सकते हैं
इल्म और अदब की मंजिल के
कितने जीने चढ़ सकते है ।
दौलत की कमी ऐसी तो नहीं
फिर भी ग़ुरबत का राज है क्यों
सिक्के तो करोड़ों ढल-ढल कर
टकसाल से बाहर आते है
किन गारों में खो जाते हैं
किन परदों में छुप जाते हैं ।
ये रात बहुत रंगीन सही
इस रात में गम का जहर भी है
नगमों की खनक में डूबी हुयी
फरियाद ओ फुगाँ की लहर भी है ।
I got another version of this ghazal in one of the website, which is given below:
ये रात बहुत रंगीन सही
इस रात में गम का जहरभी है
नगमों की खनक मेंडूबी हुयी
फरियाद ओ फुगाँ कीलहर भी है ।
तुम रक्स (नाच) करो, मैं शेर पढूं
मतलब तो है कुछ खैरात मिले
इस कौम के बच्चों कीखातिर
कुछ सिक्कों की सौगात मिले |
सिक्के तो करोड़ों ढल-ढल कर
टकसाल से बाहर आते है
किन गारों में खो जाते हैं
किन परदों में छुप जाते हैं ।
ये जुल्म नहीं तो फिर क्या है,
पैसे से तो काले धंधे हों
और मुल्क की वारिस नस्लों की
तालीम की खातिर चंदे हों
अब काम नहीं चल सकने का
रहम और खैरात के नारे से
इस देश के बच्चे अनपढ़ हैं
दौलत के गलत बंटवारे से |
बदले ये निजाम ए जरदारी
कह दो ये सियासतदानो से
ये मसला हल होने का नहीं
कागज़ पर छपे ऐलानों से |
I got another version of this ghazal in one of the website, which is given below:
ये रात बहुत रंगीन सही
इस रात में गम का जहरभी है
नगमों की खनक मेंडूबी हुयी
फरियाद ओ फुगाँ कीलहर भी है ।
तुम रक्स (नाच) करो, मैं शेर पढूं
मतलब तो है कुछ खैरात मिले
इस कौम के बच्चों कीखातिर
कुछ सिक्कों की सौगात मिले |
सिक्के तो करोड़ों ढल-ढल कर
टकसाल से बाहर आते है
किन गारों में खो जाते हैं
किन परदों में छुप जाते हैं ।
ये जुल्म नहीं तो फिर क्या है,
पैसे से तो काले धंधे हों
और मुल्क की वारिस नस्लों की
तालीम की खातिर चंदे हों
अब काम नहीं चल सकने का
रहम और खैरात के नारे से
इस देश के बच्चे अनपढ़ हैं
दौलत के गलत बंटवारे से |
बदले ये निजाम ए जरदारी
कह दो ये सियासतदानो से
ये मसला हल होने का नहीं
कागज़ पर छपे ऐलानों से |
साहिर के नज़रो से भारतीय समाज की कोई भी समस्या छिपी नहीं है
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