वतन
की आबरू खतरे में है,
हुशियार हो जाओ
हमारे इम्तहां का वक़्त है, तैयार हो जाओ
उठो रुख फेर दो दुश्मन की तोपों के दहानों का
वतन की सरहदों पर आहनी दीवार हो जाओ
हुशियार हो जाओ, वतन की आबरू खतरे में है
वो जिनकी गरदनों में हार बाहों का पहनाया था
अब उनकी गरदनों के वास्ते तलवार हो जाओ
हुशियार हो जाओ, वतन की आबरू खतरे में है
इसी को ज़िंदगी देंगे, इसी से ज़िंदगी पाई
लहू के रंग से लिखा हुआ इकरार हो जाओ
वतन की आबरू खतरे में है, हुशियार हो जाओ
हमारी कौम पर तारीख तोहमत धर नहीं पाये
वतन-दुश्मन दरिंदों के लिए ललकार हो जाओ
वतन की आबरू खतरे में है, हुशियार हो जाओ
हमारे इम्तहां का वक़्त है, तैयार हो जाओ
हमारी
सरहदों पर खून बहता हैं जवानों का
हुआ
जाता है दिल छलनी हिमाला की चट्टानों का उठो रुख फेर दो दुश्मन की तोपों के दहानों का
वतन की सरहदों पर आहनी दीवार हो जाओ
हुशियार हो जाओ, वतन की आबरू खतरे में है
वो
जिनको सादगी में हमने आँखों पर बिठाया था
जो
जिनको भाई कहकर हमने सीने से लगाया था वो जिनकी गरदनों में हार बाहों का पहनाया था
अब उनकी गरदनों के वास्ते तलवार हो जाओ
हुशियार हो जाओ, वतन की आबरू खतरे में है
न
हम इस वक़्त हिन्दू हैं न मुस्लिम हैं न ईसाई
अगर
कुछ हैं तो हैं इस देश,
इस धरती के शैदाई इसी को ज़िंदगी देंगे, इसी से ज़िंदगी पाई
लहू के रंग से लिखा हुआ इकरार हो जाओ
वतन की आबरू खतरे में है, हुशियार हो जाओ
खबर
रखना कोई गद्दार साजिश कर नहीं पाये
नजर
रखना कोई ज़ालिम तिजोरी भर नहीं पाये हमारी कौम पर तारीख तोहमत धर नहीं पाये
वतन-दुश्मन दरिंदों के लिए ललकार हो जाओ
वतन की आबरू खतरे में है, हुशियार हो जाओ
NOTE ON SAHIR : यह गीत साहिर ने 1962 के भारत-चीन
युद्ध के दौरान लिखा था | इसका संगीत खैय्याम साहब ने दिया था |