ताज तेरे लिये इक मज़हर-ए-उल्फ़त ही सही
मेरे महबूब कहीं और मिला कर मुझसे ।
तुम को इस वादी-ए-रंगीं से अक़ीदत ही सही
मेरी महबूब कहीं और मिला कर मुझ से ।
अनगिनत लोगों ने दुनिया में मुहब्बत की है
कौन कहता है कि सादिक़ न थे जज़्बे उनके
लेकिन उनके लिये तशहीर का सामान नहीं
क्यों के वो लोग भी अपनी ही तरह मुफ़लिस थे ।
ये चमनज़ार ये जमुना का किनारा, ये महल
ये मुनक़्क़श दर-ओ-दीवार, ये महराब ये ताक़
इक शहंशाह ने दौलत का सहारा ले कर
हम ग़रीबों की मुहब्बत का उड़ाया है मज़ाक ।
मेरी महबूब कहीं और मिला कर मुझ से ।
अनगिनत लोगों ने दुनिया में मुहब्बत की है
कौन कहता है कि सादिक़ न थे जज़्बे उनके
लेकिन उनके लिये तशहीर का सामान नहीं
क्यों के वो लोग भी अपनी ही तरह मुफ़लिस थे ।
ये चमनज़ार ये जमुना का किनारा, ये महल
ये मुनक़्क़श दर-ओ-दीवार, ये महराब ये ताक़
इक शहंशाह ने दौलत का सहारा ले कर
हम ग़रीबों की मुहब्बत का उड़ाया है मज़ाक ।
मेरे महबूब कहीं और मिला कर मुझसे ।
[Composer : Madan Mohan, Singer : Md. Rafi, Actor :
Sunil Dutt, Meena Kumari]
ये चमनज़ार ये जमुना का किनारा ये महल
ये मुनक़्क़श दर-ओ-दीवार, ये महराब ये ताक़
इक शहनशाह ने दौलत का सहारा ले कर
हम ग़रीबों की मुहब्बत का उड़ाया है मज़ाक |
मेरे महबूब कहीं और मिला कर मुझसे |
Note on Sahir : The nazm used in the movie is a part of the original nazm ‘Taj Mahal’,
which shot Sahir Ludhianvi to instant fame. He wrote it when he was in Lahore. Alongwith
‘Chakle’ and ‘Parchhaiyan’ this nazm is considered as best work of Sahir till
today. In movie only three paragraphs of this nazm were used. The original nazm
is given here as under :
ताज तेरे लिये इक मज़हर-ए-उल्फ़त ही सही
तुम को इस वादी-ए-रंगीं से अक़ीदत ही सही
मेरे महबूब ! कहीं और मिला कर मुझ से |
बज़्म-ए-शाही में ग़रीबों का गुज़र क्या मानी
सब्त जिस राह पे हों सतवत-ए-शाही के निशाँ
उस पे उल्फ़त भरी रूहों का सफ़र क्या मानी |
मेरी महबूब पस-ए-पदर्आ-ए-तश्हीर-ए-वफ़ा
तू ने सतवत के निशानों को तो देखा होता
मुर्दा शाहों के मक़ाबिर से बहलने वाली
अपने तारीक मकानों को तो देखा होता |
अनगिनत लोगों ने दुनिया में मुहब्बत की है
कौन कहता है कि सादिक़ न थे जज़्बे उन के
लेकिन उन के लिये तश्हीर का सामान नहीं
क्यों के वो लोग भी अपनी ही तरह मुफ़लिस थे |
ये इमारातो-मक़ाबिर ये फ़सीलें, ये हिसार
मुतलक -उल-हुक्म शहंशाहों की अज़मत के सतूं
दामन-ए-दहर पे उस रंग की गुलकारी है
जिस में शामिल है तेरे और मेरे अजदाद का खूं |
मेरी महबूब! उन्हें भी तो मुहब्बत होगी
जिनकी सन्नाई ने बख्शी है इसे शक्ले -जमील
उनके प्यारों के मक़ाबिर रहे बे-नामो-नुमूद
आज तक उन पे जलाई न किसी ने क़ंदील |
तुम को इस वादी-ए-रंगीं से अक़ीदत ही सही
मेरे महबूब ! कहीं और मिला कर मुझ से |
बज़्म-ए-शाही में ग़रीबों का गुज़र क्या मानी
सब्त जिस राह पे हों सतवत-ए-शाही के निशाँ
उस पे उल्फ़त भरी रूहों का सफ़र क्या मानी |
मेरी महबूब पस-ए-पदर्आ-ए-तश्हीर-ए-वफ़ा
तू ने सतवत के निशानों को तो देखा होता
मुर्दा शाहों के मक़ाबिर से बहलने वाली
अपने तारीक मकानों को तो देखा होता |
अनगिनत लोगों ने दुनिया में मुहब्बत की है
कौन कहता है कि सादिक़ न थे जज़्बे उन के
लेकिन उन के लिये तश्हीर का सामान नहीं
क्यों के वो लोग भी अपनी ही तरह मुफ़लिस थे |
ये इमारातो-मक़ाबिर ये फ़सीलें, ये हिसार
मुतलक -उल-हुक्म शहंशाहों की अज़मत के सतूं
दामन-ए-दहर पे उस रंग की गुलकारी है
जिस में शामिल है तेरे और मेरे अजदाद का खूं |
मेरी महबूब! उन्हें भी तो मुहब्बत होगी
जिनकी सन्नाई ने बख्शी है इसे शक्ले -जमील
उनके प्यारों के मक़ाबिर रहे बे-नामो-नुमूद
आज तक उन पे जलाई न किसी ने क़ंदील |
ये चमनज़ार ये जमुना का किनारा ये महल
ये मुनक़्क़श दर-ओ-दीवार, ये महराब ये ताक़
इक शहनशाह ने दौलत का सहारा ले कर
हम ग़रीबों की मुहब्बत का उड़ाया है मज़ाक |
मेरे महबूब कहीं और मिला कर मुझसे |
sina e dahr ke nasur hain kohna nasur...
ReplyDeletehas been modified as damna e dahr...
Dina e dahr mein nasur hai Kahnawake nasur
DeleteJazb hai jisme tere aur mere ahead ka khoon
A great poem.
ReplyDeleteSuperb!
ReplyDeleteVery nice...
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteThis is my best ghazal and very old movie name Ghazal and actor sunil Dutt and meena kumari and prathviraj Kapoor
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