September 16, 2014

साहिर, अमृता और सिनेमा (द पब्लिक एजेंडा, पाक्षिक पत्रिका के 15.09.2014 के अंक में प्रकाशित मेरा लेख)

 

साहित्य में दो बड़े शायरों की प्रेम कहानी काफ़ी चर्चित रही है, लेकिन उसकी गुत्थियां अनसुलझी हैं और यह कहानी बार-बार सिनेमा के पर्दे पर आने से भी रह जाती है। बता रहे हैं सुनील भट्ट

खबर थी कि उर्दू शायर साहिर लुधियानवी और पंजाबी लेखिका अमृता प्रीतम के प्रेम संबंधों पर बन रही फिल्म "ग़ुस्ताखियां' में इरफान साहिर की भूमिका निभाने जा रहे हैं। अमृता की भूमिका के लिए प्रियंका चोपड़ा का नाम सुना जा रहा था। फिल्म की शूटिंग नवंबर महीने में शुरू होने वाली थी। इरफान से पहले यह भूमिका फरहान अख्तर को दी गयी थी, लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया। मामला कुछ दिनों तक ठंडे बस्ते में रहा, फिर इरफान और प्रियंका के नाम के साथ गाड़ी पटरी पर आती दिखी। लेकिन अब खबर आयी है कि अमृता प्रीतम के पोते अमन क्वात्रा ने फिल्म की निर्माता आशि दुआ और निर्देशक जसमीत रीन के खिलाफ कानूनी नोटिस दिया है कि यह अमृता प्रीतम की आत्मकथा पर आधारित है और उन्हें इस पर फिल्म बनने से एतराज है। उनका कहना है कि अमृता एक जहीन महिला थीं और फिल्म उनकी जिंदगी को नाटकीय बना कर दिखा सकती है, जो उन्हें पसंद नहीं आता। उनके मुताबिक, उन्होंने फिल्म निर्माता और निर्देशक को इस बारे में पहले ही मना कर दिया था। चूंकि अब फिल्म बनाने को कवायद फिर शुरू हो गयी लगती है, इसलिए उन्हें दुबारा कानूनी नोटिस भेजना पड़ा। उन्होंने इसे कॉपीराइट के अधिकारों का उल्लंघन बताते हुए एक करोड़ रुपये का हर्जाना भी मांगा है।
अब फिल्म का मामला दुबारा खटाई में पड़ गया है, हालांकि आशि दुआ और जसमीत रीन का कहना है कि उनके पास फिल्म बनाने के कानूनी और नैतिक अधिकार हैं। इससे ज्यादा वे कुछ बोलने को राजी नहीं हैं कि "हम अपने वकील के मार्फत जवाब देंगे।' इस मामले में ज्यादातर खबरें अमन क्वात्रा के माध्यम से ही आ रही हैं। स्थिति बिलकुल साहिर और अमृता के प्रेम संबंधों की तरह हो चुकी है कि साहिर चुप्पी साधे बैठे हैं और अमृता किस्से सुनाये जा रही हैं!
साहिर और अमृता का प्रेम साहित्य जगत की एक अनसुलझी पहेली है। यह संबंध उनके जीते जी गॉसिप का हिस्सा बन चुका था, जिसके किस्से अमृता खुले तौर पर और साहिर के दोस्त दबी जुबान से सुनाते थे। मगर साहिर पूरे प्रसंग पर एक अजीब सी खामोशी अख्तियार किये बैठे रहे। उन्होंने न कभी हामी भरी, न खंडन किया। कारण कोई नहीं जानता। साहिर की इस चुप्पी ने इस प्रकरण को रहस्यमय बना दिया।
फिल्म जगत में सफल लोगों के असफल प्रेम प्रसंग हमेशा से कुतूहल और गॉसिप का हिस्सा रहे हैं। देव आनंद-सुरैया, दिलीप कुमार-मधुबाला, अमिताभ-रेखा जैसे कई किस्से हैं, जो किसी फिल्म की कहानी के लिए शानदार प्लाट की तरह हैं। साहिर और अमृता का असफल और अबूझ प्रेम भी इसी किस्म का प्रसंग है जिसमें सुधा मल्होत्रा का नाम एक प्रेम त्रिकोण बनाता है। कहते हैं कि यश चोपड़ा इन तीनों को लेकर एक फिल्म बनाना चाहते थे, जिसमें अमिताभ बच्चन को साहिर और शबाना आजमी को अमृता के रोल के लिए लिया जाना था। लेकिन किन्हीं कारणों से वह फिल्म भी न बन पायी।
साहिर और अमृता के बारे में कई कहानियां मशहूर हैं। अमृता प्रीतम ने अपनी आत्मकथा "रसीदी टिकट' में इस बारे में काफी कुछ लिखा है। उसमें उन्होंने साहिर से अपनी पहली मुलाकात से लेकर उनके इंतकाल तक के कई किस्सों का जिक्र किया है। साहिर से अपनी पहली मुलाकात पर वे लिखती हैं, ".... और सूरज की हल्की सी रोशनी में जब उसका साया पीछे की ओर पड़ता तो मैं उस साये में चलने लगती। और जिंदगी में पहली बार एहसास हुआ कि मैं जरूर उसके साये में चलती रही हूं। शायद पिछले जन्म से.....।'
एक बार अमृता के बेटे नवरोज ने उनसे पूछा कि क्या वह साहिर अंकल का बेटा है। यही सवाल उनसे राजेंद्र सिंह बेदी ने भी किया था। उन्होंने इस बात से इनकार किया, लेकिन इस वाकये को अपनी आत्मकथा का हिस्सा जरूर बनाया। एक जगह वे लिखती हैं कि उन्हें सिगरेट पीने की आदत साहिर से ही पड़ी थी : "उसके जाने के बाद मैं उसके छोड़े हुए सिगरेटों के टुकड़ों को संभालकर अलमारी में रख लेती थी, और फिर एक-एक टुकड़े को अकेले में बैठकर जलाती थी और जब उंगलियों के बीच पकड़ती थी तो लगता था, जैसे उसका हाथ छू रही हूं....।'
एक जगह अमृता अपने अंदर की "सिर्फ औरत' के बारे में लिखती हैं, "दूसरी बार ऐसा ही समय मैंने तब देखा था, जब एक दिन साहिर आया था, तो उसे हल्का सा बुखार चढ़ा हुआ था। उसके गले में दर्द था, सांस खिंचा-खिंचा सा था। उस दिन उसके गले और छाती पर मैंने "विक्स' मली थी। कितनी ही देर मलती रही थी, और तब लगा था, इसी तरह पैरों पर खड़े-खड़े मैं पोरों से, उंगलियों से और हथेली से उसकी छाती को हौले-हौले मलते हुए सारी उम्र गुजार सकती हूं। मेरे अंदर की "सिर्फ औरत' को उस समय दुनिया के किसी कागज-कलम की आवश्यकता नहीं थी।'
इसी किस्म के और भी कई वाकयात अमृता प्रीतम ने "रसीदी टिकट' में दर्ज किये हैं। साहिर अमृता से प्रेम करते थे या नहीं, इस पर दो राय हो सकती है, लेकिन अमृता का पक्ष पूरी तरह से साफ था। साहिर क्यों चुप रहे, यह कहना मुश्किल है। उनके दोस्तों का मानना है कि बचपन के अनुभवों ने उन्हें खामोश-सा बना दिया था। वे ऐसी बातें सीधे कहने की बजाय लिखकर देने में ज्यादा सहज महसूस करते थे। यहां तक कि उन्होंने "रसीदी टिकट' में दर्ज किस्सों पर भी कुछ नहीं कहा। अमृता हैरान थीं और इस हैरानी को उन्होंने आगामी पुस्तकों का हिस्सा भी बनाया।
साहिर के अमृता समेत आठ प्रेम प्रसंग माने जाते हैं, जिनमें सुधा मल्होत्रा के अलावा लता मंगेशकर का भी जिक्र आता है। लेकिन जिस प्रेम संबंध का साहिर पर सबसे गहरा असर पड़ा, वह था लुधियाना के कॉलेज के दिनों में इशर कौर नाम की सिख लड़की से उनका प्रेम। दोनों को इस वजह से कॉलेज भी छोड़ना पड़ा। राही मासूम रजा ने कहा था, "मैं न जाने क्यों महसूस करता हूं कि साहिर की जिंदगी से यह लड़की कभी नहीं निकली। शायद वह हर लड़की में उसी लड़की की झलक देखते और जब वे पास जाकर उसे अपने असली रूप में देखते तो बिदक जाते।'
साहिर अमृता से बिदके या नहीं, कह नहीं सकते, लेकिन बाकी सबसे वे यकीनन जल्द ही ऊब गये। सुधा मल्होत्रा के मामले में ऐसा ही हुआ। वे उन दिनों एक नयी गायिका थीं और साहिर का उनके प्रति अनुराग फिल्म जगत में चर्चा का विषय बना हुआ था। सुधा को भी एक स्थापित गीतकार के साथ नाम जुड़ना रोमांचक लगता था। लेकिन यह ज्यादा दिन न चल पाया क्योंकि साहिर की एकतरफा दीवानगी चुकने लगी थी। जल्दी ही सुधा मल्होत्रा की शादी हो गयी और उन्होंने फिल्मी दुनिया को अलविदा कह दिया। साहिर की मशहूर नज्म "चलो इक बार फिर से अजनबी बन जायें हम दोनों' सुधा के बारे में ही लिखी मानी जाती है। साहिर के बाकी किस्सों की तरह यह प्रसंग भी भुला दिया जाता, अगर अमृता इसे "रसीदी टिकट' में उनके और साहिर के संबंधों को एक मोड़ देने के लिए इस्तेमाल न करती। उनकी आत्मकथा में सुधा के जिक्र ने उनको हमेशा-हमेशा के लिए साहिर-अमृता के प्रेम संबंध का तीसरा कोण बना दिया।
साहिर के प्रेम संबंधों के बारे में एक बात यकीनी तौर पर कही जा सकती है कि वे कभी एक वफादार प्रेमी न बन सके। उनकी प्रेमिकाएं उन्हें छोड़ती चली गयीं या वे उन्हें छोड़ते गये। लगता है कि मानो साहिर प्रेम सिर्फ इसलिए करते हों कि उन्हें अधूरा छोड़ना है। एक नज्म में वे कहते हैं, "दो दिन तुमने प्यार जताया,/दो दिन तुमसे मेल रहा/अच्छा खासा वक्त कटा और अच्छा खासा खेल रहा।/अब उस खेल का जिक्र ही कैसा।/ वक्त कटा और खेल तमाम।/मेरे साथी खाली जाम।'कई लोगों का यह भी मानना है कि साहिर-अमृता के प्रेम की ज्यादातर बातें अमृता की उड़ायी हुुई हैं क्योंकि वे साहिर की प्रसिद्धि से फायदा उठाना चाहती थीं। लेकिन इस बात पर यकीन करना मुश्किल है क्योंकि अमृता अपने रचनाओं के दम पर साहिर से पहले ही नाम कमा चुकी थीं। इन दोनों के प्रेम पर अमृता के साथी इमरोज, जो चालीस बरस तक उनके साथ रहे, राज्यसभा टीवी के एक प्रोग्राम में बड़ी बेबाकी से अपनी राय रखते हैं, "बंबई में मुशायरा हो तो वह एक बहाना है अमृता वहां जायेगी, दिल्ली में मुशायरा है तो साहिर इधर आयेगा, तो फिर वे मिलेंगे। वह बंबई से कभी अमृता से मिलने दिल्ली नहीं आया।' इमरोज के तर्क में दम है, लेकिन अमृता "रसीदी टिकट' में इतना कुछ कह गयी हैं कि सच्चाई गौण हो चुकी है और बस एक किस्सा बचा रह गया है।
ऐसे में उनके पोते-पोती का यह मानना कि उन पर बनी फिल्म इस मुद्दे को हल्का और सनसनीखेज बना देगी, एक नाहक सी बात लगती है। अगर अमृता को साहिर से अपने संबंधों को छिपाना होता तो वे भी साहिर की तरह खामोश रह सकती थीं, लेकिन उन्होंने तो पूरे विस्तार में जाकर इसका जिक्र किया। इसीलिए अगर इस मुद्दे पर फिल्म बनती है तो वह अमृता की ही इच्छापूर्ति होगी। फिल्म के पक्ष में दूसरा तर्क यह है कि क्या इस दुनिया में कभी किसी लेखक-लेखिका का असफल प्रेम प्रसंग नहीं रहा है? अगर फिल्म में पात्रों के नाम और घटनाएं अलग हुईं तो क्या इसे कानूनी तौर पर रोकना उचित माना जायेगा? फिल्म की निर्माता आशि दुआ का यही कहना है कि यह फिल्म दो कवियों के बारे में है। अगर अमन क्वात्रा की अपनी दादी के बारे में कोई विशेष राय है तो क्या उन्हें बाकी सबको उनके रचनाकर्म से रोकना चाहिए? इससे बेहतर तो यह होगा कि वे इस प्रोजेक्ट का हिस्सा बनें और इसकी कहानी को मजबूत कर एक अच्छी फिल्म लाने में मदद करें।

September 02, 2014

आगे भी जाने न तू, पीछे भी जाने न तू (वक़्त-1965) Aage bhi jane na tu (Waqt -1965)

आगे  भी जाने न तू, पीछे भी जाने न तू
जो भी है बस इक यही पल है ..

अनजाने सायों का राहों में डेरा  है
अनदेखी ने हम सब को घेरा है
ये पल उजाला है बाकी अँधेरा है
ये पल गंवाना ना ये पल ही तेरा है
जीने वाले सोच ले, यही वक्त है, 
कर ले पूरी आरज़ू
आगे  भी जाने न तू,  पीछे भी जाने न तू
जो भी है बस इक यही पल है ..

इस पल के जलवों ने महफ़िल संवारी  है
इस पल की गर्मी ने धड़कन उभारी है
इस पल के होने से दुनिया हमारी है
ये पल जो देखो तो सदियों पे भारी है
जीने वाले सोच ले यही वक्त है, 
कर ले पूरी आरज़ू
आगे  भी जाने न तू,  पीछे भी जाने न तू
जो भी है बस इक यही पल है ..

इस पल के साए में अपना ठिकाना है
इस पल के आगे हर शै फ़साना है
कल किसने देखा है, कल किसने जाना है
इस पल से पायेगा जो तुझको पाना है
जीने वाले सोच ले यही वक्त है,  कर ले पूरी आरज़ू
आगे  भी जाने न तू,  पीछे भी जाने न तू
जो भी है बस इक यही पल है ..

  [Composer : Ravi;  Singer : Asha Bhonsle;  Producer : B.R.Chopra;  Director : Yash Chopra;  Actor : Erica Lal (the singer) Sunil dutt, Sadhna, Raj Kumar, Shashi Kapoor, Sharmila Tagore]

 

आगे भी जाने न तू (वक्त -1965) Aage bhi jane na tu (Waqt-1965)

आगे  भी जाने न तू, पीछे भी जाने न तू
जो भी है बस इक यही पल है ..

अनजाने सायों का राहों में डेरा  है
अनदेखी ने हम सब को घेरा है
ये पल उजाला है बाकी अँधेरा है
ये पल गंवाना ना ये पल ही तेरा है
जीने वाले सोच ले, यही वक्त है, 
कर ले पूरी आरज़ू
आगे  भी जाने न तू,  पीछे भी जाने न तू
जो भी है बस इक यही पल है ..

इस पल के जलवों ने महफ़िल संवारी  है
इस पल की गर्मी ने धड़कन उभारी है
इस पल के होने से दुनिया हमारी है
ये पल जो देखो तो सदियों पे भारी है
जीने वाले सोच ले यही वक्त है, 
कर ले पूरी आरज़ू
आगे  भी जाने न तू,  पीछे भी जाने न तू
जो भी है बस इक यही पल है ..

इस पल के साए में अपना ठिकाना है
इस पल के आगे हर शै फ़साना है
कल किसने देखा है, कल किसने जाना है
इस पल से पायेगा जो तुझको पाना है
जीने वाले सोच ले यही वक्त है,  कर ले पूरी आरज़ू
आगे  भी जाने न तू,  पीछे भी जाने न तू
जो भी है बस इक यही पल है ..

  [Composer : Ravi;  Singer : Asha Bhonsle;  Producer : B.R.Chopra;  Director : Yash Chopra;  Actor : Erica Lal (the singer) Sunil dutt, Sadhna, Raj Kumar, Shashi Kapoor, Sharmila Tagore]

 

आप की महकी हुई ज़ुल्फ़ (त्रिशूल - 1978) Aapki mahki hui zulf (Trishul -1978)

आप की महकी हुई ज़ुल्फ़ को कहते हैं घटा
आप की मदभरी आँखों को कंवल  कहते हैं |


मैं तो कुछ भी नहीं तुम को हसीं लगती हूँ
इसको चाहत भरी नज़रों का अमल कहते हैं |

एक हम ही नहीं सब देखने वाले तुम को
संग-ए-मरमर  पे लिखी शोख़ ग़ज़ल कहते हैं |

ऐसी बातें न करो जिनका यक़ीं मुश्किल हो
ऐसी तारीफ़ को नीयत का खलल  कहते हैं |

मेरी तक़दीर कि तुम ने मुझे अपना समझा
इसको सदियों की तमन्नाओं का फल कहते हैं |

[Composer : Khayyam, Singer : Lata Mangeshkar, Yashudas, Producer : Gulshan Rai, Director : Yash Chopra, Actor : Sanjeev Kumar, Wahida Rehman]