मैंने जज्बात निभाए हैं उसूलों की जगह ॥
जो साज से निकली है वो धुन सबने सुनी है
जो तार पे गुजरी है इस दिल को पता है ॥
जो तार पे गुजरी है इस दिल को पता है ॥
अब उस खेल का जिक्र ही क्या,
वक्त कटा और खेल तमाम ॥
देखा है जिंदगी को कुछ इतना करीब से
चेहरे तमाम लगने लगे हैं अजीब से ॥
उतना ही उपकार समझ कोई जितना साथ निभा दे,
जनम मरण का मेल है सपना, ये सपना बिसरा दे,
कोई न संग मरे
मन रे ! तू कहे न धीर धरे ॥
मन रे ! तू कहे न धीर धरे ॥
जनम का कोई मोल नहीं है
जनम मनुष का तोल नहीं है
करम से सबकी है पहचान
सबको सन्मति दे भगवान ॥
जनम मनुष का तोल नहीं है
करम से सबकी है पहचान
सबको सन्मति दे भगवान ॥
क्या मुल्ला क्या बिरहमन पांडे
सब हैं इक माटी के भांडे ॥
इन्साफ तेरे साथ है, इल्जाम उठा ले
अपने पे भरोसा है, तो ये दांव लगा ले ॥
अपने पे भरोसा है, तो ये दांव लगा ले ॥
मौत आयी तो मर भी लेंगे,
मौत से पहले मरना क्या ॥
गम और खुशी में फर्क न महसूस हो जहां,
मैं दिल को उस मुकाम पे लाता चला गया॥
जिन्दगी भीख में नहीं मिलती,
जिन्दगी बढ़ के छीनी जाती है
अपना हक़ संगदिल जमाने से
छीन पाओ तो कोई बात बने ॥
अपना हक़ संगदिल जमाने से
छीन पाओ तो कोई बात बने ॥
उस सुबह को हम ही लायेंगे,
वो सुबह हमीं से आएगी ॥
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