July 22, 2011

वक़्त से दिन और रात (वक़्त -1965) Waqt se din aur raat (Waqt -1965)

जहाँ बस्ती थी खुशियाँ, आज हैं मातम वहाँ 
वक़्त लाया था बहारें वक़्त लाया है खिजां । 

वक़्त से दिन और रात, वक़्त से कल और आज
वक़्त की हर शै गुलाम, वक़्त का हर शै पे राज । 

वक़्त की गर्दिश से है, चाँद तारों का निजाम
वक़्त की ठोकर में है क्या हुकूमत क्या समाज । 

वक़्त की पाबंद हैं आती जाती रौनकें
वक़्त है फूलों के सेज, वक़्त है काँटों का ताज । 

आदमी को चाहिए वक़्त से डर कर रहे
कौन जाने किस घड़ी वक़्त का बदले मिजाज । 

वक़्त के आगे उड़ी कितनी तहजीबों की धूल
वक़्त के आगे मिटे कितने मजहब और रिवाज़ । 

(The last couplet was not used in movie.  I have taken it from the compilation of Sahir's song "Gata Jaye Banjara" published by Hindi Book Centre, New Delhi, 1993 Edition, Page 124) 

[Music : Ravi;  Singer : Md.Rafi; Producer : B.R.Chopra; Director : Yash Chopra;  Actor : Balraj Sahni]


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