March 18, 2015

पिघला है सोना दूर गगन पर (जाल-1952) Pighla hai sona door gagan par(Jaal-1952)

पिघला है सोना दूर गगन पर, फैल रहे हैं शाम के साये
खामोशी कुछ बोल रही है
भेद अनोखे  खोल रही है
पंख पखेरू सोच में गुम है, पेड़ खड़े हैं सीस झुकाये
पिघला है सोना दूर गगन पर, फैल रहे हैं शाम के साये
 
धुंधले-धुंधले मस्त नज़ारे
उड़ते बादल,  मुड़ते धारे
छुप के नज़र से जाने ये किसने रंग रँगीले खेल रचाये
पिघला है सोना दूर गगन पर, फैल रहे हैं शाम के साये
 
कोई भी उसका राज़ न जाने
एक हकीकत, लाख फसाने
एक ही जलवा शाम सवेरे, भेस बदल कर सामने आए
पिघला है सोना दूर गगन पर, फैल रहे हैं शाम के साये
 
[Composer : S.D.Burman, Singer : Lata Mangeshkar;   Producer : Films Arts;  Director : Guru Dutt;  Actor :  Geeta Bali]
 

1 comment:

  1. संध्याकाळी क्षितिजावर सूर्य अस्ताला जाण्याच्या वेळेला जो सोनेरी मुलामा आकाशाला मिळतो त्याचे अत्यंत अलंकारिक शब्दात
    पिघला है सोना, दूर गगनपर
    वर्णन साहिर ने केले आहे.

    शेवटचे कडवे, " एकही जलवा भेस बदल कर सामने आये"
    अगदी चपखल शब्द.
    Great poet .

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