तोरा मन दर्पण कहलाये
भले बुरे सारे कर्मो को देखे और दिखाए ॥
भले बुरे सारे कर्मो को देखे और दिखाए ॥
मन ही देवता
मन ही ईश्वर
मन से बड़ा न कोय ॥
मन ही ईश्वर
मन से बड़ा न कोय ॥
वक़्त के आगे उड़ी कितनी तहजीबों की धूल
वक़्त के आगे मिटे कितने मजहब और रिवाज़ ॥
आदमी को चाहिए वक़्त से डर कर रहे
कौन जाने किस घडी वक्त का बदले मिजाज ॥
इक पल की पलक पे ठहरी हुई ये दुनिया
इक पल के झपकने तक हर खेल सुहाना है ॥
इक पल के झपकने तक हर खेल सुहाना है ॥
हम लोग खिलोने हैं इक ऐसे खिलाडी के
जिसको अभी सदियों तक ये खेल रचाना है ॥
ये पाप है क्या ये पुण्य है क्या
रीतों पे धरम की मुहरें हैं,
रीतों पे धरम की मुहरें हैं,
हर युग में बदलते धर्मों को
कैसे आदर्श बनाओगे ?
कैसे आदर्श बनाओगे ?
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