July 10, 2013

वो सुबह कभी तो आयेगी (फिर सुबह होगी - 1958) Wo subah kabhi to aayegi (Phir Subah Hogi-1958)

इन काली सदियों के सर से, जब रात का आंचल ढलकेगा
जब दुख के बादल पिघलेंगे, जब सुख का सागर छलकेगा
जब अम्बर झूम के नाचेगा, जब धरती नज़्में गायेगी
वो सुबह कभी तो आयेगी

जिस सुबह की खातिर जुग-जुग से, हम सब मर-मर कर जीते हैं
जिस सुबह के अमृत की धुन में, हम जहर के प्याले पीते हैं
इन भूखी प्यासी रूहों पर, इक दिन तो करम फर्मायेगी
वो सुबह कभी तो आयेगी

माना कि अभी तेरे मेरे, अरमानो की कीमत कुछ भी नहीं
मिट्टी का भी है कुछ मोल मगर, इन्सानों की कीमत कुछ भी नहीं
इन्सानों की इज्जत जब झूठे, सिक्कों में तोली जायेगी
वो सुबह कभी तो आयेगी

दौलत के लिये जब औरत की, इस्मत को बेचा जायेगा
चाहत को कुचला जायेगा, ग़ैरत को बेचा जायेगा
अपनी काली करतूतों पर, जब ये दुनिया शर्मायेगी
वो सुबह कभी तो आयेगी

बीतेंगे कभी तो दिन आख़िर, ये भूख के और बेकारी के
टूटेंगे कभी तो बुत आख़िर, दौलत की इजारादारी के
जब एक अनोखी दुनिया की बुनियाद उठाई जायेगी
वो सुबह कभी तो आयेगी

मजबूर बुढ़ापा जब सूनी, राहों की धूल फांकेगा
मासूम लड़कपन जब गंदी, गलियों भीख मांगेगा
ह़क मांगने वालों को जिस दिन, सूली दिखाई जायेगी
वो सुबह कभी तो आयेगी

फ़ाको की चिताओं पर जिस दिन, इन्सां जलाये जायेंगे
सीनों के दहकते दोज़ख में, अर्मां जलाये जायेंगे
ये नरक से भी गन्दी दुनिया, जब स्वर्ग बनाई जायेगी
वो सुबह कभी तो आयेगी

मनहूस समाजों ढांचों में जब जुर्म पाले जायेंगे
जब हाथ काटे जायेंगे जब सर उछाले जायेंगे
जेलों के बिना जब दुनिया की सरकार चलाई जायेगी
वो सुबह हमीं से आयेगी

संसार के सारे मेहनतकश, खेतो से, मिलों से निकलेंगे
बेघर, बेदर, बेबस इन्सां, तारीक बिलों से निकलेंगे
दुनिया अम्न और खुशहाली के, फूलों से सजाई जायेगी
वो सुबह हमीं से आयेगी

जब धरती करवट बदलेगी जब क़ैद से क़ैदी छूटेंगे
जब पाप घरौंदे फूटेंगे जब ज़ुल्म के बन्धन टूटेंगे
उस सुबह को हम ही लायेंगे वो सुबह हमीं से आयेगी
वो सुबह हमीं से आयेगी


[Composer : Khayyam;  Singer : Mukesh, Asha Bhonsle;   Producer : Parijat Pictures;  Director: Ramesh Saigal; Artist : Raj Kapoor, Mala Sinha]




5 comments:

  1. appreciate,,
    in my college days i used to read sahir's nazams
    ,
    books like talkhiya,gata jaye banjara
    now trying to recall others


    thsnks a lot for this beautiful collection

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  2. Sahir was a revolutionary poet. He believed in a socialist society where no one will die of hunger, everyone will get equal opportunity to better their living. He had seen the brunt of excess of the British rule.He was confident that none other but we people will change the future and fortune of our nation. We can feel his emotions in his words.. वो सुबह कभी तो आएगी, वो सुबह हमीं से आएगी...

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  3. कालजयी रचना

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  4. He died in 1980. And i bet he died with a broken heart.
    Wo subha na roshan na thi abad
    Bas lasho ke the dher bache
    Khoon sane har hath range
    Jis subha ki umeed main sab the maujood khade
    Use khudmein pighalta dekh rahe
    Miti sang dil bhi the bat gaye
    Sache khoon beh gaye, ab kali siyahi par jeeten hai
    Imaan ke sir to kat gaye, ab baimaani haddi main sama kar chalte hai
    Insaan keemat insaan kare
    Tujhmain jo alag uska samaan kare
    Wo subha kabhi na ayegi
    Wo subha kabhi na ayegi

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  5. आज के दौर में भी प्रासंगिक है यह नज़्म।साहिर साहब की दिव्य दृष्टि का कमाल आपकी क़लम में आज भी मौजूद हैं और आगे भी रहेगा। हार्दिक श्रद्धांजलि।

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