June 14, 2012

खुदा-ए-बर्तर तेरी ज़मीं पर, ज़मीं की खातिर ये जंग क्यों है (ताज महल -1963) khuda e bartar teri zameen par (Taj Mahal - 1963)



खुदा--बर्तर तेरी ज़मीं पर, ज़मीं की खातिर ये जंग क्यों हो
हर एक फ़तह--ज़फ़र के दामन पे खून--इंसा  रंग क्यों है
खुदा--बर्तर ...

ज़मीं भी तेरी हैं हम भी तेरे, ये मिल्कियत का सवाल क्या है
ये कत्ल--ख़ूँ का रिवाज़ क्यों हैये रस्म--जंग--जदाल क्या है
जिन्हे तलब है जहान भर की,  उन्हीं का दिल इतना तंग क्यों है ।

ग़रीब माँओ शरीफ़ बहनों को अम्न--इज़्ज़त की ज़िंदगी दे
जिन्हे अता की है तू ने ताक़त, उन्हे हिदायत की रोशनी दे
सरों में किब्र--ग़ुरूर क्यों हैं, दिलों के शीशे पे ज़ंग क्यों है ।

क़ज़ा 
के रस्ते पे जाने वालों को बच के आने की राह देना
दिलों के गुलशन उजड़ जाए, मुहब्बतों को पनाह देना
जहां में जश्न--वफ़ा के बदले, ये जश्न--तीर--तफ़ंग क्यों है ।

[ Composer : Roshan; Singer : Lata Mangeshkar, Actor : Beena Roy] 


5 comments:

  1. यह अमर गीत यहाँ देने के लिए आभार.

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  2. साहिर सच में जंग के विरोधी थे।

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  3. Jung duniya ki zarurat thi hai rahegi jung hone ki khas wajha Haqq 1 aadmi Chhinta hai jung hoti hai 1 aadmi mangta hai jung nahi hoti haqqdar ka haqq dedo kabhi jung nahi hogi

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  4. Jinhen tlb hai jahan bhr ki unhi ka dil itna tng kyun hai
    Sahir zindgi k pairokar the har lamhe ko jeene ka paigham tha unki shayri mein

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  5. जंग किसी समस्या का हल नहीं होता।

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