पल दो पल के शायर की दास्तान (आउटलुक, अप्रैल11, 2016)

आउटलुक, अप्रैल11, 2016 के अंक में प्रकाशित मेरी पुस्तक “साहिर लुधियानवी: मेरे गीत तुम्हारे” की समीक्षा 


पल दो पल के शायर की दास्तान

(आउटलुक, अप्रैल11, 2016 के अंक में प्रकाशित मेरी पुस्तक “साहिर लुधियानवी: मेरे गीत तुम्हारे” की समीक्षा)

साहिर की ज़ुबान, साहिर की नज़्म, साहिर के गीत, साहिर की कहानियां, अगर साहिर को गिनते रहें तो वक़्त कम लगेगा | हिन्दी और उर्दू को उन्होंने अपनी दो आँखों की तरह प्यार से पाला | यह पुस्तक उसी साहिर के काम को याद दिलाती है | सुनील भट्ट ने जितना संभव हो सका है, साहिर को लफ्जों के माध्यम से पाठकों तक पहुँचने की कोशिश की है | अलग-अलग संदर्भों के साथ साहिर अपने गीतों के माध्यम से पाठकों से रूबरू होते हैं | सुनील भट्ट ने उन गज़लों को भी यहाँ जगह दी है जो मूल से रूपांतरित होकर फिल्म में आईं हैं | इस किताब को संदर्भ के लिए याद किया जाना चाहिए | हिन्दी में इस तरह की किताबों की हमेशा कमी रही है |

सुनील भट्ट ने साहिर के लोकप्रिय गीतों के साथ उन गीतों-नज़्मों-गज़लों को भी लिया है, जो सन 50 के दौर में उन्होंने लिखी थीं | फिल्म के साल के साथ दी गई इस जानकारी से साहिर को समझना और एक शायर, फिल्मी गीतकार के रूप में उनकी यात्रा को जानना दिलचस्प होगा | उनकी इस रचनात्मक यात्रा में उन्होंने कैसे-कैसे प्यार, देश, रंग-नस्ल, समुदाय पर लिखा और कितना मारक लिखा यह जानकारी महत्वपूर्ण है | सुनील भट्ट ने किताब को इस तरह बाँट दिया है, जिससे यह पता चल सके कि उनकी कलम कैसे समाज पर करारी चोट करती थी | उनके भजनों में भी सांप्रदायिक सौहार्द और अमन की बात खुलकर सामने आती थी | वह एक गीतकार थे या शायर, इस पुस्तक को पढ़ते हुये यह विचार आना लाजिमी है, लेकिन जब विविधताओं से भरी उनकी रचनाएं पढ़ें तो लगता है कि उन्होंने एक गीतकार को शायर से कभी अलग नहीं होने दिया | वह इतने सफल ही इसलिए रहे कि धुन के हिसाब से शब्द लिखने में माहिर थे | वह कहानी के मूल में पहुँच कर उस बिन्दु को पकड़ लेते थे, जहां व्यक्ति फिल्मी कहानी के साथ-साथ संगीत का मज़ा भी लेने लगता है | उनकी फिल्मी पकड़ और समझ ने उन्हें इतनी ख्याति दिलाई | सुनील भट्ट ने साहिर के गीतों से परिचय करने के साथ-साथ उनका परिचय भी पाठकों से कराया है |


सुनील अपनी प्रस्तावना में ही लिखते हैं, अगर हम साहिर के शायर और गीतकार दोनों पहलुओं को मिला दें तो एक विरत व्यक्तित्व सामने आता है, जिस पर अलग से काम करने की पूरी गुंजाइश है | यह वाक्य ही साहिर को समझने के लिए काफी है | क्योंकि आम लोगों के बीच साहिर सिर्फ फिल्मी गीतकार के रूप में ही पहचाने जाते हैं, जबकि साहिर एक उम्दा शायर भी थे | इसी को समझने के लिए इस पुस्तक में उनकी मूल गज़लों, नज़्मों का ज़िक्र भी है, जो बताता है कि उनकी कलम से तराने और शायरी कैसे निर्बाध रूप से बहती थी | हर एक पल के शायर साहिर के लिए फिल्मी गीत लिखना सिर्फ पैसा कमाने का माध्यम कभी नहीं रहा | वह इसे सामाजिक दायित्व भी मानते थे | भट्ट की मेहनत से वह एक सम्पूर्ण रूप से पाठकों तक पहुंचे हैं | हिन्दी पाठकों के लिए यह अच्छी खबर है |   

March 02, 2016

Sahir Ludhianvi : Mere Geet Tumhare

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